यदि हम हमारे देश भारत की बात करे तो यहां पर आपको घूमने के लिए बहुत से स्थान मिलते है और साथ ही आपको कई ऐतिहासिक जगह भी मिलती है जहां पर आप जा सकते है। परंतु हमारे देश मे कुछ जगह ऐसी भी है जिनका इतिहास काफी रोचक है, तो ऐसी ही एक जगह का इतिहास बहुत प्रसिद्ध है और वो जगह मेहंदीपुर बालाजी मंदिर है।
तो आज के इस लेख में हम आपको मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास बताने जा रहे है। बहुत कम ऐसे लोग होंगे जो मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के इतिहास के बारे में जानते होंगे। क्योंकि बहुत से लोग ऐसे भी है जिन्होंने कभी मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का नाम भी नही सुना है। कुछ लोग ऐसे भी होंगे जिन्होंने इस मंदिर का नाम तो सुना होगा परंतु उन्हें इतिहास नही पता होगा। तो चलिए आज हम आपको इस मंदिर के बारे में पूरी जानकारी बताते है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास क्या है ?
मेहंदीपुर बालाजी का मंदिर राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है और यह मंदिर शक्ति के देवता भगवान हनुमान जी का है। शायद आप जानते ही होंगे कि भारत के कई जगहों पर भगवान हनुमान जी को बालाजी या मारुति के नाम से भी जाना जाता है। यह कारण है कि इस मंदिर को बालाजी का नाम दिया गया है। कई लोगो द्वारा ऐसा भी माना जाता है कि इस स्थान में जादुई शक्तियां हैं, जिससे यह भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थल बन चुका है।
ममेहंदीपुर बालाजी का यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक, इसका एक समृद्ध और आकर्षक इतिहास है। मान्यता के अनुसार, भगवान हनुमान की मूर्ति अरावली की पहाड़ियों के बीच स्वयं प्रकट हुई और किसी भी कलाकार द्वारा नहीं बनाई गई है। पहले मंदिर का क्षेत्र घना जंगल था जहां श्री महंत जी के पूर्वज बालाजी की पूजा करने लगे थे।
एक कथा के अनुसार श्री महंत जी के स्वप्न में तीनों देवता आए और उन्हें एक आवाज सुनाई दी जो उन्हें अपने सेवा के लिए तैयार रहने का आदेश दे रही थी। अचानक, भगवान बालाजी उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें यह आदेश दिया की मेरी सेवा करने का कर्तव्य निभाओ। इस घटना के बाद, उन्होंने यहां भगवान हनुमान की पूजा करना शुरू कर दिया था और तब से ही यह मंदिर काफी प्रसिद्ध हुआ है।
जितना ही यह मंदिर प्रसिद्ध है उतना ही इस मंदिर का वातावरण भी काफी प्रसिद्ध माना जाता है, क्योंकि यहां पर आपको एक अलग ही वातावरण का अनुभव करने को मिलता है। तो चलिए नीचे हम आपको बताते है कि इस मंदिर का वातावरण कैसा है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का वातावरण कैसा है ?
जैसा कि हमने आपको बताया है कि इस मंदिर में आपको एक अलग से वातावरण का अनुभव महसूस होता है, यदि आपका दिल बहुत ही कमजोर है तो यह स्थान आपके लिए नही है आप केवल इस मंदिर में भगवान हनुमान जी का दर्शन करके आ सकते है। क्योंकि जैसे ही आप इस मंदिर के परिसर में कदम रखते है तो आपको एक भयावह वातावरण महसूस होता है क्योंकि आप निश्चित रूप से अपने आस-पास नकारात्मकता की प्रबल उपस्थिति को महसूस करेंगे। और साथ ही मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की वास्तुकला इसकी कहानी और विलक्षणता को दर्शाती है।
यदि हम इस मंदिर की बात करे तो इस मंदिर में चार कक्ष हैं। जो कि पहले दो कक्षों में भगवान हनुमान और भगवान भैरव की मूर्तियाँ हैं। परंतु जब आप अंतिम हॉल में जाते है तो अंतिम हॉल आपको एक भयानक अनुभव प्राप्त हो सकता है। आप वहां पर ऐसा देखोगे कि कोई कोई स्त्री-पुरूष अपना सिर पीट रहे हैं, और उन पर खौलता हुआ पानी भी डाल रहे हैं। सिर्फ इतना ही नही बल्कि आप उनमें से कुछ को छत से लटके हुए भी देख सकते है। यहां पर दिखने वाला पूरा दृश्य आपके रोंगटे खड़े कर सकता है। तो यदि आप हॉल में जाने की सोचते है तो आपका दिल काफी मजबूत होना चाहिए ताकि यह सब देखकर भी आपको डर ना लगे।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर केवल वहां के वातावरण के लिए ही नही जाना जाता है बल्कि इस मंदिर के कुछ रिवाज भी है जो कि इस मंदिर को और भी प्रसिद्ध बनाते है। चलिए अब हम आपको इस मंदिर के रिवाज क्या है यह बताते है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के रिवाज क्या है
यदि हम इस मंदिर के रिवाज की बात करे तो इस मंदिर में बहुत ही अच्छा रिवाज बनाया गया है। इस मंदिर में की जाने वाली नियमित गतिविधियों में पवित्र अनुष्ठान और जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराना शामिल है। और भी कुछ विशिष्ट रिवाज हैं जो की मोटे तौर पर तीन भागों में वर्गीकृत किये जाते है और यह तीनो रिवाज़ हम आपको नीचे बता रहे है।
दुर्खास्ता रिवाज़
इस रिवाज़ के लिए आपको मंदिर के बाहर किसी भी दुकान से छोटे दुर्खास्ता लड्डू लेने होंगे। आपको इन लड्डुओं की दो प्लेटें प्रदान की जाएंगी और आपको बस इतना करना है कि इन प्लेटों को मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के सामने खड़े पुजारियों को चढ़ाना है, वे जितना चाहें उतना उठा लेंगे और देवता के सामने जलती हुई आग में डाल देंगे। प्रत्येक प्लेट में 4-5 लड्डू होते हैं। दुर्खास्ता का समय सुबह की प्रार्थना के बाद और शाम की प्रार्थना से पहले का होता है। दो प्लेटों का महत्व यह है कि पहली प्लेट भगवान को यह सूचित करने के लिए है कि आप उनके आशीर्वाद के लिए हैं, जबकि दूसरी प्लेट उनसे अनुरोध करने के लिए है कि वे आपके लक्ष्यों को प्राप्त करने और आपकी समस्याओं को हल करने में आपका मार्गदर्शन करें।
प्लेटेअर्पण करने के बाद आप आगे बढ़ें और प्रेतराज सरकार और कोतवाल भैरव जी के लिए भी ऐसा ही करें। अंतिम प्रसाद के बाद बचे हुए लड्डू में से दो लड्डू आपको खाने चाहिए। जिस पात्र में अधिक भोग बचा होता है, उसे लोग अपने सिर के चारों ओर 7 बार घेरते हैं और फिर बिना पीछे देखे फेंक देते हैं। तो यह तो था दुर्खास्ता रिवाज़, चलिए अब हम आपको अगला रिवाज बताते है।
अर्ज़ी रिवाज़
दुर्खास्ता के बाद, आपको बाहर की किसी भी दुकान से अर्जी के लिए ऑर्डर करना होगा, जिसकी निश्चित लागत कुछ भी हो सकती है। इसमें 1.25 किलो लड्डू, 2.25 किलो उड़द की दाल और 4.25 किलो उबले चावल शामिल होते हैं। यह प्रेतराज सरकार और कोतवाल भैरव जी को दो अलग-अलग बर्तनों में अर्पित करना होता है। तो यह था अर्जी रिवाज़, चलिए अब हम आपको तीसरा रिवाज बताते है।
सवमणि रिवाज़
मंदिर छोड़ने से पहले, यदि आप कोई इच्छा मांगते हैं, तो आपको बालाजी को बताना होगा कि एक बार फिर से आने के बाद, आप मंगलवार और शनिवार को की जाने वाली भेंट की एक रस्म सवमणि चढ़ाएंगे। तो यह तीसरा रिवाज़ है।
तो इस लेख में हमने आपको मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास बताया है। हम आशा करते है कि आज का यह लेख आपको पसंद आया होगा। यदि आपको आज का यह लेख पसंद आया हो तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया साइट पर जरूर शेयर करे।