तनोट राय माता जैसलमेर मंदिर कैसे पहुंचे? By Train, Bus & Airoplane

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यदि आप तनोट राय माता के मंदिर जाना चाहते हैं तो आपको यह जानना होगा कि आप वहां तक कैसे पहुंच सकते हैं? माता तनोट राय का मंदिर जैसलमेर से लगभग 120 किलोमीटर दूर भारत -पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक स्थित है जैसलमेर पहुंचने के लिए आप ट्रेन से आ सकते हैं दिल्ली से रोजाना दो से तीन ट्रेनें जैसलमेर के लिए रवाना होती है।

जैसलमेर से तनोट रॉय माता मंदिर की दूरी कितनी है ? (Jaisalmer se Tanot Mata Mandir kaise phuche)

जैसलमेर से तनोट रॉय माता मंदिर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर की है। 

जैसलमेर से तनोट राय मंदिर (Tanot Roy Mata Mandir) पहुंचने के लिए तीन रोडवेज बसों और दो प्राइवेट बसों का संचालन हर दिन होता है उनकी मदद से आप जैसलमेर से तनोट माता के मंदिर पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप रिक्शा के माध्यम से भी तनोट माता के मंदिर पहुंच सकते हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जैसलमेर से सुबह 10:00 बजे रोडवेज बस तनोट माता मंदिर के लिए रवाना होती है जो दोपहर के 1:30 PM पर तनोट राय मंदिर पहुँचती है और दूसरी बस लगभग शाम को 3:00 बजे चलती है और शाम के 6:00 बजे तनोट माता मंदिर पहुँचती है। यह बसें रात्रि के समय तनोट माता परिसर में ही मौजूद रहती हैं जो भी यात्री माता के दर्शन के लिए आते हैं उनके लिए धर्मशाला की व्यवस्था की गई है साथ ही उनके खानपान की व्यवस्था भी मंदिर परिसर में मौजूद है।

तनोट माता मंदिर निकटतम रेलवे स्टेशन कौन सा है ?

जैसलमेर सबसे निकट का रेलवे स्टेशन जोकि तनोट माता मंदिर के पास मे पड़ता है। जैसलमेर रेलवे स्टेशन से तनोट माता मंदिर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर की है।

जैसलमेर से तनोट माता मंदिर की दूरी ? (Jaisalmer se Tanot mata mandir ki duri)

जैसेलमेर से तनोट रॉय माता मंदिर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर की है।

तनोट माता मंदिर रेल से कैसे पहुंचे ? (Tanot ray mata mandir Train se kaise phuche)

तनोट रॉय माता मंदिर(Tanot Roy Mata Mandir ) रेल से पहुंचने के लिए आपको जैसलमेर(Jaisalmer) रेलवे स्टेशन पर आना पड़ेगा। तनोट माता मंदिर का कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। जैसलमेर रेलवे स्टेशन से आप बस द्वारा तनोट माता मंदिर जा सकते है।

तनोट माता मंदिर बस से कैसे पहुंचे ? (Tanot Mata Madir Bus se kaise phuche)

तनोट रॉय माता मंदिर पहुंचने के लिए आपको जैसलमेर रेलवे स्टेशन से ही मंदिर के लिए बस मिल जाएगी जो आपको तनोट माता मंदिर पर उतार देगी।

तनोट माता मंदिर का अद्भुत इतिहास जानकर चौक जायेंगे!

वैसे तो भारत में बहुत सारे मंदिर हैं और सभी का अपनी अपनी जगह अलग-अलग महत्व है प्रत्येक मंदिर की अपनी मान्यता है अनेक चमत्कारों की गाथा इन मंदिरों से जुड़ी हुई है। ऐसा ही एक मंदिर राजस्थान के जैसलमेर से लगभग स 125 किलोमीटर दूर माता तनोट राय का मंदिर है। यह मंदिर अपने चमत्कार के लिए पूरे देश भर में प्रसिद्ध है तनोट माता के मंदिर को श्री आवड देवी माता के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। एक इकलौता ऐसा मंदिर है जिसमें पूजा पाठ का पूरा काम सीमा सुरक्षा बल के जवान यानी कि बीएसएफ के जवानों द्वारा किया जाता है।

आज की इस पोस्ट में हम आपको तनोट माता मंदिर के इतिहास के बारे में बताएंगे साथ ही हम आपको बताएंगे कि यह मंदिर इतना प्रसिद्ध क्यों है? इसके साथ ही आपको यह भी जानने को मिलेगा की तनोट माता मंदिर कैसे पहुचे?

 

तनोट माता मंदिर का इतिहास

तनोट माता मंदिर को लेकर बताया जाता है कि 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना ने लगभग 3000 से अधिक बम बरसाए थे लेकिन इससे भी दिलचस्प बात तो यह है कि लगभग 450 से अधिक बम अभी भी इस मंदिर में मौजूद हैं जो जिंदा होने के बावजूद भी आज तक नहीं फटे। तनोट राय माता की मंदिर में संग्रहालय में बड़ी आसानी से देखा जा सकता है जो की  एक बहुत बड़ा चमत्कार माना जाता है।

 इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है बताया जाता है कि लगभग 1200 साल पहले यह मंदिर अस्तित्व में आया था इस मंदिर के बनने के पीछे एक रोमांचक कहानी प्रचलित है इसके हिसाब से राजस्थान के जैसलमेर मैं मौजूद जेलर गांव में मामड़िया चारण नाम का एक व्यक्ति रहता था उसके कोई भी संतान नहीं थी इसलिए लोगों ने उसे पूजा-पाठ करने के लिए कहा तो उसने माता हिंगलाज की सेवा करना शुरू कर दिया। उस व्यक्ति के हिसाब से यदि वह माता हिंगलाज को प्रसन्न कर लेता है तो उसे संतान की प्राप्ति हो जाती अपनी इसी इच्छा के चलते मामडिया चारण ने बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता कि 7 बार पैदल चलकर दर्शन किए।

बताया जाता है कि उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन माता हिंगलाज उसके सपने में आई और मामड़िया चारण से पूछा कि उसे संतान के रूप में बेटा चाहिए या फिर बेटी व्यक्ति चालाक था उसने माता को ही अपनी संतान के रूप में जन्म लेने की बात कही। माता ने उसकी बात को मानते हुए उसे वरदान दिया और उस व्यक्ति की प्रथम संतान के रूप में माता ने जन्म लिया।

बाद में इन्हें तनोट राय के नाम से जाना जाने लगा इसके अलावा इनका नाम आवड देवी रखा गया। आवड देवी के अलावा इनकी 6 बहने और थी।जिनके नाम आशी, शशि,गेहली,होल,रूप व लांग था अपने जीवन में आवड देवी ने बहुत सारे चमत्कार दिखाएं। सभी चमत्कारों के चलते माता तनोट राय अपने आसपास के इलाकों में काफी प्रसिद्ध होती चली गई।

तनोट राय स्थान के कारण वह माता तनोट राय के नाम से जाना जाने लगी तनोट जगह के अंतिम राजा भाटी तनुराव थे जिन्होंने इस मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई थी। वर्तमान समय में यदि इस मंदिर की बात करें तो यह भारत और पाकिस्तान की सीमा के बीच में है। बात है 1965 की जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था तब पाकिस्तान ने भारत के जैसलमेर बॉर्डर पर हमला किया। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने माता तनोट राय के मंदिर पर भी जबरदस्त हमला किया और बहुत सारे बमों की बारिश की लेकिन माता तनोट राय की कृपा से मंदिर परिसर में एक भी बम नहीं फटा।

बताया जाता है कि माता तनोट राय साक्षात प्रकट होकर सभी फौजियों से कहती है की यदि वह परिसर के अंदर रहेंगे तो उन्हें कोई भी खतरा नहीं रहेगा यह बात सुनकर सभी फौजी मंदिर परिसर में आ गए थे लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्हें माता पर विश्वास नहीं था जिसके चलते उन्होंने मंदिर परिसर से भागने की कोशिश की लेकिन जैसे ही मंदिर परिसर से बाहर निकले तो बम पड़ने की वजह से उनकी मौत हो गई थी।

तनोट राय परिसर में पाकिस्तान की तरफ से लगभग 450 बम्ब गिरे थे लेकिन वह सभी आज भी तनोट राय मंदिर में संग्रहालय में मौजूद हैं।यहाँ पर आने वाले भक्त इन बमों को चमत्कार के रूप में देखते हैं।

 

1971 के भारत -पाकिस्तान युद्ध में माता तनोट राय का चमत्कार 

ऐसा ही कुछ चमत्कार 1971 के युद्ध के दौरान भी देखने को मिला था जैसलमेर बॉर्डर पर स्थित लोंगेवाला में पाकिस्तान की सेना में भारत की एक छोटी सी टुकड़ी पर हमला कर दिया था तो भारत की एक छोटी सी टुकड़ी ने पूरी पाकिस्तानी ब्रिगेड को टेंको सहित ध्वस्त कर दिया था।

बताया जाता है कि माता तनोट राय की कृपा की वजह से छोटी सी टुकड़ी ने पाकिस्तान का बुरा हाल किया था।लोंगेवाला को आज भी पाकिस्तान के टैंकों के कब्रग्राह के रूप में याद किया जाता है। इस चमत्कार के बाद पाकिस्तान की सेना ने भी माता तनोट राय के चमत्कार को माना था जिसके  चलते पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर शहनाज खान भी माता तनोट राय के दर्शन करने के लिए आए थे।

माता के दरबार में नतमस्तक होते हुए उन्होंने माता के दरबार में एक चांदी का नक्षत्र अर्पित किया आज भी पाकिस्तानी सेना माता तनोट राय की शक्ति के आगे सर झुकाती हैं।

विजय स्तम्भ का निर्माण

लोंगेवाला युद्ध के खत्म होने के बाद मंदिर परिसर में विजय स्तंभ का निर्माण करवाया गया जहां अब हर वर्ष 16 दिसंबर को सैनिकों की याद में उत्सव मनाया जाता है। 1965 के युद्ध के खत्म होने के बाद बीएसएफ ने यहां पर अपनी एक चौकी स्थित कर दी थी साथ ही इस मंदिर के रखरखाव का पूरा जिम्मा लिया।

बीएसएफ के जवान सँभालते है मंदिर परिसर

तनोट राय मंदिर की परिसर का और प्रबंधन का पूरा कार्य बीएसएफ के जवान संभालते हैं बीएसएफ के जवान जब भी अपनी ड्यूटी के लिए निकलते हैं तो वह सबसे पहले तनोट राय माता के मंदिर में दर्शन करते हैं। कई मौकों पर बीएसएफ के जवान जहां पर रात्रि भजन और कीर्तन का आयोजन करते रहते हैं उनका पूरा विश्वास है कि माता तनोट राय की कृपा से दुश्मन उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो सालों बाद भी यह मंदिर लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है और लोग दूर-दूर से यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं।

बकरे की दी जाती है बली

दोस्तों तनोट राय माता के मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए आते हैं कहा जाता है कि यहां पर संतान की प्राप्ति के बकरे की बली की घोषणा की जाती है जिस की भी इच्छा पूरी होती है वह तनोट राय मंदिर परिसर में बकरे को बली देकर आता है वही यहां पर मिलने वाला प्रसाद भी बकरे की बली का होता है।

तनोट राय मंदिर में घूमने के लिए है अच्छी जगह

तनोट राय मंदिर में घूमने की बहुत सारी जगह है ऐसी बहुत सारी चीजें हैं जिनको देखने के बाद आप भी चमत्कार को मानने लगेंगे। तनोट राय मंदिर परिसर में सालों पुराना एक पेड़ है जहां पर लोग आज भी उसकी पूजा पाठ करते हैं और अपनी मनोकामना मांगते हैं। हर साल आश्विन और चैत्र नवरात्रा में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जिसका दृश्य देखने लायक होता है।

निष्कर्ष

उम्मीद करते हैं दोस्तों आपको तनोट माता मंदिर से जुड़ी संपूर्ण जानकारी बेहद ही पसंद आई होगी यदि आप भी राजस्थान से है या फिर आप कहीं से भी है लेकिन आपने तनोट माता मंदिर के परिसर का अनुभव किया हुआ है तो आप हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताएं की आपका मंदिर परिसर का अनुभव कैसा रहा और आपको किस तरह के दार्शनिक स्थल वहां पर देखने को मिले।

सामान्य प्रश्न

तनोट माता क्यों प्रसिद्ध है?

तनोट माता 1965 में भारत पाकिस्तान के युद्ध के बाद प्रसिद्ध है क्योंकि पाकिस्तान ने तनोट माता के मंदिर पर लगभग 450 बम गिराए थे और माता की कृपा से एक बम भी फटा नहीं आज भी यह बम मंदिर परिसर के संग्रहालय में मौजूद हैं।

जैसलमेर बॉर्डर पर कौन सी माताजी है?

जैसलमेर बॉर्डर पर माता तनोट राय जी का मंदिर मौजूद है जो आज के समय में आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है।

आवड़ माता के नाम से कौन सी देवी को जाना जाता है?

Ans:आवड माता के नाम से तनोट राय माता को जाना जाता है जिनका मंदिर जैसलमेर से लगभग 120 किलोमीटर दूर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर मौजूद है।

 

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