आज के इस लेख में हम आपको मेंढक मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले है। आप सभी लोगो ने बहुत से मंदिरों के बारे में सुना होगा, परंतु क्या आपने कभी मेंढक मंदिर के बारे में सुना है? बहुत ही कम लोग है जिन्होंने मेंढक मंदिर के बारे में सुना होगा और मेंढक मंदिर देखा होगा। कुछ लोग तो ऐसे भी होंगे जो मेंढक मंदिर का नाम सुनकर हैरान हो गए होंगे, क्योंकि इस मंदिर का नाम बाकी मंदिरों से अलग है। लेकिन आज हम इसी मंदिर की बात करने जा रहे है।
यदि आप इस मंदिर का नाम पहली बार सुन रहे होंगे तो आपको इस मंदिर के बारे में जानकारी प्राप्त करना बेहद जरूरी है। तो चलिए अब हम आपको इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानकारी देते है।
मेंढक मंदिर के बारे में जानकारी
आज हम जिस मेंढक मंदिर की बात कर रहे है वह मेंढक मंदिर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के ओयल कस्बे में स्थित है। इस मंदिरके मेंढक जीव की पूजा की जाती है। इस मंदिर में केवल मेंढक नही है बल्कि इस मेंढक के पीठ पर शिवजी भी विराजमान है। मेंढक मंदिर यह देश मे अकेला ऐसा मंदिर है जहां मेंढक की पूजा की जाती है। यह मंदिर 200 साल पुराना मंदिर है और मांडूक तंत्र पर आधारित है। इस मंदिर का निर्माण बाढ़ जैसी आपदाओं से बचाव के लिए किया गया था।
इस मंदिर की एक बात जानकर आपको हैरानी होगी कि इस मंदिर में जो शिवलिंग है वह रंग बदलता है। सिर्फ इतना ही नही यहां पर एक खड़ी नंदी की मूर्ति भी है जो आपको पूरे देश मे और कई भी देखने को नही मिलेगी। जब आप इस मंदिर को देखोंगे तब आपको इस मंदिर पर तांत्रिक देवी देवताओं की मूर्तियां चारो तरफ लगी हुई दिखाई देगी। सिर्फ इतना ही नही बल्कि मंदिर के अंदर देखने पर भी आपको कई देवी देवताओं के चित्र दिखेंगे।
आपको मंदिर के सामने ही मेंढक की मूर्ति का दर्शन होगा और वही यदि आप मंदिर के पीछे की ओर जाएंगे तो आपको भगवान शिव का पवित्र स्थल दिखेगा। कई लोगो का कहना ऐसा है कि इस नर्मदेश्वर मंदिर का वास्तु कपिला एक महान तांत्रिक ने किया था। इस मंदिर की संरचना ही ऐसी की गई है जिसे देखकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाएगा।
मेंढक मंदिर की कहानी क्या है ?
अब हम आपको मेंढक मंदिर के बारे कुछ विशेष जानकारी देने जा रहे है ताकि आपको पता चले कि आखिर मेंढक मंदिर की स्थापना कैसे हुई थी।
इस मंदिर के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है। राजा बख्त सिंह, जो 19वीं शताब्दी की शुरुआत में ओल के जमींदार थे। उसका कोई वारिस नहीं था और वह एक पुत्र के लिए तरस रहा था। इसके बाद एक तांत्रिक पुजारी ने उसे शिव का मंदिर बनाने के लिए कहा, लेकिन पहले उसे तांत्रिक परंपरा के अनुसार एक मेंढक की बलि देनी पड़ी, क्योंकि मेंढक को प्रजनन क्षमता का प्रतीक माना जाता है।
इसी ‘मेंढक की बलि’ के स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया था। इसीलिए मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि एक विशालकाय मेंढक, मंदिर को अपनी पीठ पर रखता है। मेंढक के पीछे एक चौकोर आकार में निर्मित शिव का मंदिर है, जो कई फीट ऊंचा है और वहां पर सीढ़ियों से पहुंचना पड़ता है। ऐसा भी कहा जाता है कि तांत्रिक विद्या के अनुसार, मंदिर एक यंत्र जो कि एक अष्टकोणीय कमल है, इस पर बनाया गया है और दीवारों को तांत्रिक देवी और देवताओं की नक्काशी के साथ उकेरा गया है। इस मंदिर में दीपावली के समय पर काफी भीड़ रहती है और साथ ही आपको महाशिवरात्रि के दिन भी भक्तो की भीड़ देखने को मिलती है।
मेंढक मंदिर FAQ
मेंढक मंदिर में कौन सी मूर्तिया है ?
जवाब – मेंढक मंदिर में मेंढक की मूर्ति है और साथ ही यहां पर आपको मंदिर के पीछे भगवान शिव की भी मूर्ति दिखेगी।
मेंढक मंदिर कितने साल पुराना मंदिर है ?
जवाब – मेंढक मंदिर लगभग 200 साल पुराना मंदिर है।
मेंढक मंदिर कहा पर है ?
जवाब – मेंढक मंदिर यह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के ओयल कस्बे में स्थित है।
मेंढक मंदिर का नाम मेंढक मंदिर क्यो रखा गया ?
जवाब – मंदिर के स्थान पर मेंढक की बलि दी गयी थी इसीलिए इस मंदिर का नाम मेंढक मंदिर रखा गया था।
जवाब –
तो इस लेख में हमने आपको मेंढक मंदिर के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। हम आशा करते है कि आज का यह लेख आपको पसंद आया होगा। यदि आपको आज का यह लेख पसंद आया हो तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया साइट पर जरूर शेयर करे।