जानिए शुक्रताल का रोचक इतिहास
आज के इस लेख में हम आपको शुक्रताल का रोचक इतिहास क्या है इसके बारे में जानकारी देने वाले है। बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे जिन्हें शुक्रताल के बारे में जानकारी होगी, और कुछ लोग तो ऐसे भी होंगे जिन्हें यह भी नही पता होगा कि आखिर शुक्रताल क्या है। तो सबसे पहले हम आपको यह बता देते है कि आखिर शुक्रताल क्या है और उसके बाद आप सभी लोगों को शुक्रताल का इतिहास बताएंगे। तो चलिए अब जानते है कि शुक्रताल क्या होता है।
शुक्रताल क्या है ?
शुक्रताल एक धार्मिक तीर्थ स्थल है जो कि जो कि उत्तर प्रदेश मुज्जफरनगर में स्थित है। जैसा कि आप सभी लोग जानते ही है कि प्राचीन काल से ही हमारे देश मे धार्मिक तीर्थ स्थलों के प्रति लोगो की श्रद्धा और भावना जुड़ी हुई है। आपको जानकर हैरानी होगी कि ऐसा भी कहा जाता है कि इस तीर्थ स्थल की कहानी महाभारत से भी जुड़ी हुई है। इस स्थान पर बहुत से लोग आते है और साथ ही इस तीर्थ स्थल की कुछ कहानियां भी बहुत प्रसिद्ध है। तो अब आप जान चुके है कि शुक्रताल क्या है। चलिए अब हम आपको इस तीर्थ स्थल का इतिहास बताते है और साथ ही कुछ ऐसी बाते भी बताएंगे जो शायद ही आपने कही सुनी होगी।
शुक्रताल का इतिहास क्या है ?
जैसे कि हमने आपको ऊपर ही बता दिया है कि शुक्रताल एक धर्मिक तीर्थ स्थल है जो कि उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित मुजफरनगर शहर में है। हमारे देश भारत मे जो हिन्दू वर्ग के लोग है वह इसके प्रति काफी आस्था भी रखते है। यह तीर्थ स्थल दिल्ली से जो कि हमारी राजधानी है यहां से 150 किलोमीटर दूर है। आप सभी ने गंगा नदी का नाम तो सुना ही होगा तो यह गंगा नदी भी यही से गुजरती है और काफी सारे श्रद्धालु भक्त इस गंगा नदी में स्नान करके खुद को पवित्र करते है।
शुक्रताल में एक वृक्ष भी है जो कि बहुत चर्चा में रहता है। इस वृक्ष का नाम अक्षवत है जिसकी विशाल जटाये है और वह पूरी तरह से अंदर तक फैली हुई है। यदि इस पावन वृक्ष की बात करे तो यह काफी प्राचीन और पुराना है। इस पावन वृक्ष को सभी श्रद्धालु भक्त पूजते है। सिर्फ इतना ही नही बल्कि यहां पर आने वाले सभी भक्तों के लिए यहाँ पर भगवत गीता का भी आयोजन किया जाता है और साथ ही पुरातन भगवत कथाएं भी यहां पर आपको सुनने को मिलती है। शुक्रताल में कई प्राचीन मंदिर, धर्मशालाएं, समागम स्थापित किए गए हैं जिसके कारण ही इसे धार्मिक स्थल माना जाता है।
यदि हम प्राचीन काल की बात करे तो तब गंगा नदी इस स्थान के बहुत ही करीब थी परंतु अब ऐसा नही रहा है क्योंकि अब गंगा नदी इस धार्मिक स्थल से थोड़ी दूर चली गयी है। यदि आप इस धार्मिक स्थल पर जाते है और आपको किसी भी मंदिर का दर्शन करना हो तो आपको कई सारी सीढ़िया चढ़नी पड़ती है। बिना सीढ़िया चढ़े आप मंदिर के दर्शन और पूजा पाठ नही कर सकते है।
शुक्रताल की धार्मिक कथाएं क्या कहती है ?
शुक्रताल की कुछ धार्मिक कथाएं भी है जो कि बहुत प्रसिद्ध है, चलिये ऐसी ही हम एक कथा आपको बताते है जो कि हस्तिनापुर के पांडव वंशज राजा परीक्षित की है। तो बात 5000 साल पूर्व की है, गंगा किनारे एक अक्षवत वृक्ष है और इसी वृक्ष के नीचे करीब 88000 ऋषि-मुनियों और स्वयं सुखदेव जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा को राजा परीक्षित को सुनाई थी ताकि उन्हें उनके श्राप से मुक्ति मिल सके। ऐसा कहा जाता है कि राजा परीक्षित द्वारा कोई गलती हो गयी थी जिसके कारण उनको एक ऋषि के पुत्र ने सर्प से मृत्यु का श्राप दे दिया था। इसी श्राप की मुक्ति दिलाने के लिए 88000 ऋषि-मुनियों ने श्रीमद् भागवत कथा को सुनाया था और राजा परीक्षित को मुक्ति दिलाई थी।
जिस धार्मिक वृक्ष के नीचे यह कथा सुनाई गई थी उसकी भी काफी विशेषताए और कहानियां है जो कि बहुत ही रोचक है। चलिये इस धार्मिक वृक्ष के बारे में हम आपको कुछ जानकारी देते है।
धार्मिक वट वृक्ष की कथा क्या है ?
जिस तरह से शुक्रताल एक धार्मिक तीर्थ स्थल है और इस जगह को काफी महत्व दिया जाता है उसी तरह यहां पर स्थित वट वृक्ष को भी काफी महत्व दिया जाता है और सभी श्रद्धालु भक्त इस वट वृक्ष को पूजते है। इस वृक्ष की भी एक बहुत खास बात है जिसके कारण यह वृक्ष हमेशा चर्चा में रहता है और वह यह है की जब सभी वृक्षों के पत्ते सूख कर जमीन पर गिरने लगते हैं, तब भी यह वृक्ष हरा भरा रहता है इसका अर्थ यह है कि इस वृक्ष के पत्ते कभी सूखते ही नही है। यदि आप इस वृक्ष को देखते है तो यह आपको काफी बढ़ा और विशाल दिखता लेकिन फिर भी इस वृक्ष की जटाये उत्पन्न नहीं होती है और यही बात सभी को रोचक लगती है।
सिर्फ इतना ही नही बल्कि जब भी आप इस वृक्ष को देखते है तब यह हमेशा आपको एक नया वृक्ष की तरह ही दिखता है। यदि आप इस वृक्ष से थोड़ा दूर तक जाते है तो इसी वृक्ष के पास आपको एक कुआं भी दिखेगा, और इस कुएं के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि यह कुआं पांडव काल से यहां पर स्थित है। यहां पर जो लोग रहते है उनका कहना तो यह भी है कि यदि आप इस वृक्ष को धागा बांधकर अपनी कोई मनोकामना मांगते है तो वह अवश्य पूरी होती है।
इस जगह की इतनी चर्चा होने के बाद भी बहुत से लोग ऐसे है जिन्हें इस तीर्थ स्थल के बारे मे कुछ भी जानकारी नही है। परंतु अब आपको इस जगह के बारे में जानकारी प्राप्त हो चुकी है, और आपको इस जगह पर एकबार अवश्य जाना चाहिए।
निष्कर्ष –
तो इस लेख में हमने आपको शुक्रताल क्या है और उसका इतिहास क्या है इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी है। हम आशा करते है कि आज का यह लेख आपको पसंद आया होगा। यदि आपको आज का यह लेख पसंद आया हो तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया साइट पर जरूर शेयर करे।